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टिकट दे दो मामू

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क्या आपने कभी परिवार में किसी के नेता होने से उपजने वाली संभावनाओं की कल्पना की है? आपके दूर के चचाजान या मामू या चचेरे, ममेरे भाई या चाची, ताई, बुआ, बहन, कोई भी अगर नेता होता तो? तो और कुछ भले होता न होता, आपके परिवार से बेरोजगारी गधे के सींग की तरह गायब हो जाती। परिवार क्यों, जनाब खानदान कहिए। आप किसी भी नेता के सगे संबंधियों को देख लीजिए, कोई बेरोजगार न मिलेगा। वह अगर अनपढ़ भी है, तो भी कुछ नहीं तो वह ठेकेदार तो हो ही जाएगा। इतने सारे टेंडर निकलते हैं, एक-दो तो उसके नाम भी सही। अग कोई बेवड़ा हो और बचपन से ही उसमें अपराधी प्रवृत्तियां पनपने लगी हों और जवानी में उसका रेप या हत्या जैसे किसी जुर्म में नाम आ गया हो, तो उसे पार्टी का कारिंदा बनाकर खपाया जा सकता है। बल्कि ऐसे विशिष्ट चरित्र वालों की पार्टियों को आजकल ज्यादा जरूरत होती है। इसलिए जब कोई चचाजान या मामूजान अपने भांजे-भतीजे में ऐसे श्रेष्ठ गुण देखते हैं, तो उन्हें खुशी होती है क्योंकि ऐसे मामलों में उन्हें हाईकमान से ज्यादा झिक-झिक नहीं करनी पड़ती। ऐसे लोगों के बायोडेटा को देखते ही हाईकमान की भी बांछे खिल जाती हैं।

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