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सांसद निधि की शुरुआत 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव ने की थी। सांसदों को सामूहिक रूप से भ्रष्ट करने की यह शुरुआत थी। सांसदों की खरीद-फरोख्त करके अपनी सरकार बचाने वाले नरसिंहा राव को सांसदों को खुश करने का यह नायाब तरीका नजर आया। उसके बाद कोई सरकार इसे खत्म करने का राजनीतिक साहस नहीं जुटा सकी।
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